सुनील कुमार
डीवीएनए। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में आज ठीक वैसे ही हालात हैं जैसे करीब 70 साल पहले थे। उस समय देश की जनता आजादी के लिए आंदोलनरत थी लेकिन आज सरकार द्वारा लाए गए कृषि क्षेत्र में 3 सुधारवादी कानूनों के विरोध में आंदोलनरत है। जैसा कि हम जानते हैं भारत की 70% आबादी गांव में निवास करती है जिसमें से अधिकांश किसान है भारत का सबसे बड़ा वर्ग आज सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में लाए गए 3 कानूनों को काला कानून बताकर उसे वापस लेने की जिद पर बड़ा है और दिसंबर माह की कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे डटा है।
सरकार और किसान नेताओं के बीच कई बार की वार्ता होने के बाद भी अभी तक कोई सहमति नहीं बनी और आगे भी बनती नहीं दिख रही है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अपनी बेबाक शैली के लिए जाने जाते हैं।
वह अपनी बात को जनता के बीच में इस तरह से रखते हैं की उनके शब्दों को छेनी और हाथों से भी नहीं काटा जा सकता लेकिन इस बार वे किसानों को कई बार समझा चुके हैं की उनकी सरकार द्वारा जो किसी क्षेत्र में तीन सुधारवादी कानून लाए गए हैं यह ऐसे ही रातों-रात नहीं बने इनमें सब तरह से किसानों का हित देखकर बनाया गया है ताकि किसानों को अधिक मुनाफा मिल सके और उनकी आए दोगुनी हो सके जिससे देश का किसान जो बदहाली की मार झेल रहा है उससे मुक्ति मिल सके और किसान भी खुशहाल जीवन व्यतीत कर सके। लेकिन देश का किसान सरकार के इन तीनों सुधारवादी कानों से सहमत नहीं है। किसानों को अंदेशा है कि है कि सरकार इन तीनों कानूनों से किसान को ठगने का काम कर रही है और भविष्य में उद्योगपतियों की तिजोरी भरने की फिराक में है। लेकिन किसानों के साथ भारी संख्या में राजनीतिक दल भी आंदोलन में कूद पड़े हैं और किसानों की पैरवी करते हुए तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग पकड़े हैं। जिस पर देश के प्रधानमंत्री मोदी कह रहे हैं की यह आंदोलन नहीं किसानों को राजनीतिक पार्टियों द्वारा भड़काया जा रहा है।
अगर विपक्ष के पिछले घोषणा पत्रों को उठाकर देखा जाए तो उसमें इस तरह के कृषि सुधार कानूनों की बात की गई है। लेकिन अब उनकी सरकार सत्ता में है तो विपक्ष को लग रहा है की अगर यह कानून पूरी तरह से लागू हो गए तो किसानों की हालत सुधर जाएगी और इसका श्रेय मोदी को चला जाएगा। मोदी जी सभी विपक्षी पार्टियों से हाथ जोड़कर अपील कर चुके हैं कि आप इस कानून को लागू हो जाने दो जो किसानों के लिए वरदान साबित होंगे इसका श्रेय आप ले लो लेकिन इसमें रोड़ा मत अटकओ।
बरहाल कुछ भी हो इस समय किसान और सरकार कृषि कानूनों को लेकर आमने सामने हैं कई बार की वार्ता होने के बाद भी कोई सहमति नहीं बन सकी। किसान सिर्फ एक ही जिद पर अड़ा है की इन तीनों काले कानूनों को वापस लेने के अलावा कोई भी शर्त मंजूर नहीं है। फिलहाल देश में अशांति का माहौल है। किसानों के आंदोलन में कई किसान दम तोड़ चुके हैं लेकिन अभी तक सरकार और किसान में कोई सहमति नहीं बनी है। देश के कृषि मंत्री किसानों से हाथ जोड़कर बार-बार अपील कर रहे हैं की मोदी की नियत गंगा से भी पवित्र है और वह पूरी तरह से किसानों की भलाई चाहते हैं कृषि मंत्री का कहना है कि देश के प्रधानमंत्री की इच्छा है की भारत एक कृषि प्रधान देश है पूरी दुनिया मैं भारत के किसानों द्वारा अदा किए गए अन्य की सराहना हो। लेकिन किसान नेता किसी भी हाल में आंदोलन से हटने को तैयार नहीं है उनकी इच्छा है कि जब तक तीनों कानून वापस नहीं लिए जाते तो वह वापस अपने अपने घरों को नहीं लौटेंगे।
कृषि कानून के विरोध में किसानों का यह आंदोलन दिन प्रतिदिन विकराल होता जा रहा है एक तरफ जहां गेहूं की बुवाई और गन्ने की कटाई चल रही है और किसान अपने परिवारों को छोड़कर सड़कों पर पड़ा है देखने वाली बात यह होगी कि इसमें जीत सरकार की होती है किसानों की। फिलहाल आंदोलन थमता नजर नहीं आ रहा है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं, डीवीएनए की सहमति आवश्यक नहीं)
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